Sunday, May 31, 2009

इस्लाम में सात फेरे लेना गैर शरई: उलेमा

देवबंद। गोरखपुर में एक मुस्लिम जोड़े द्वारा हिंदू रीति रिवाज से शादी करने को उलेमा ने अमान्य करार दे दिया है। उलेमा ने कहा है कि इस्लाम में सात फेरे लेना गैर शरई है और ऐसा करने वाला मुस्लिम गुनाहगार है। शरीयत के मुताबिक शादी के वास्ते निकाह करना जरूरी है।
शनिवार को गोरखपुर में 27 जोड़ों की सनातन परंपरा के अनुसार दहेज रहित सामूहिक शादियां हुई हैं। इनमें एक जोड़ा मुस्लिम था। जंगल कौड़िया इलाके में आयोजित इस समारोह में मोहम्मदपुर के अकबल अली पुत्र मोहम्मद यासीन और खलीलाबाद के मजबुल्लाह की बेटी तराबुन निसां ने हिंदू रीति रिवाज से विवाह रचाकर सात जन्म तक साथ रहने का संकल्प लिया।
दोनों के परिवारों की प्रतिक्रिया है, 'इंसानियत मजहब से बड़ी चीज है और अल्लाह सभी का एक ही है।' इस प्रकरण पर देवबंद के उलेमा ने साफ कर दिया कि इस्लाम धर्म गैर शरई काम की इजाजत नहीं देता।
आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के सदस्य और वक्फ दारुल उलूम के नायब मोहतमिम मौलाना मुहम्मद सूफियान कासमी ने कहा कि मुस्लिम लड़का-लड़की का हिंदू रीति रिवाज से शादी करना गैर शरई है। ऐसी शादी की शरीयत के मुताबिक कोई मान्यता नहीं है। इस्लामिक मान्यता के अनुसार दूल्हा-दुल्हन के मध्य निकाह का करार जरूरी है। जब तक दोनों का निकाह नहीं होता, तब तक शादी नहीं मानी जाएगी।
फतवा विभाग के नायब प्रभारी मुफ्ती अहसान कासमी, वरिष्ठ प्रवक्ता मौलाना अब्दुल लतीफ कासमी, मौलाना इब्राहिम कासमी आदि उलेमा ने कहा कि इस्लाम धर्म के मुताबिक शादी के लिए शरई मान्यताओं का पालन करना जरूरी होता है, जो लोग ऐसा नहीं करते है वे गुनाहगार हैं। दूसरे धर्म की मान्यताओं को स्वीकार करना तथा उन पर अमल करना गैर इस्लामिक कार्य है, जिनकी इस्लाम धर्म में कोई गुंजाइश नहीं है। गोरखपुर की उक्त शादी पूर्ण रूप से गैर शरई है तथा मजहब-ए-इस्लाम के मुताबिक उनकी शादी नहीं हुई है।

Monday, April 20, 2009

बोर्ड बोर्ड न रहा!


ओफ्हो! दसवीं क्लास में आकर बडा टेंशन होता है, अब हर चीज की लिमिट हो गई है। न खुल के खेल पा रही हूं और न ही दोस्तों के साथ मस्ती.। खैर, इस साल मुझे अब तक की गई सारी पढाई का मूल्यांकन करवाना है।- यह कहना है, इसी वर्ष दसवीं कक्षा में पहुंचने वाली समीक्षा का। दूसरी तरफ, शिवम ने अभी आठवीं का फाइनल एग्जाम दिया है। इस लिहाज से देखें, तो बोर्ड एग्जाम उसके लिए दो साल दूर जरूर है, लेकिन उसने इस बारे में अभी से सोचना शुरू कर दिया है। उसका कहना है, मुझे तो थोडी राहत है, लेकिन उन लोगों के बारे में सोचकर थोडा डर लगता है, जिन्हें अभी बोर्ड देना है! वक्त बीतने में समय थोडे ही लगेगा, इसलिए मैंने सोच लिया है कि क्यों न आने वाले बोर्ड को दिमाग में रख कर पढाई की जाए! दोस्तो, समीक्षा या शिवम की तरह आपके मन में भी बोर्ड को लेकर कुछ इसी तरह की प्लानिंग होगी! आने वाले बोर्ड को लेकर थोडा डर और इसमें कैसे मा‌र्क्स आएंगे, इसे लेकर टेंशन भी हो रही होगी..! यदि हां, तो ऐसे में एक ही उपाय है टेंशन से कीजिए तौबा और आने वाले कुछ महीनों को लेकर बनाइए एक लांग-टर्म प्लानिंग। क्योंकि यदि आप बोर्ड में बेहतर परफार्म करना चाहते हैं, तो यही सही समय है आपके लिए, एक सुनहरे मौके की तरह..!
बोर्ड का हौव्वा?
दोस्तो, बोर्ड का हौव्वा और कुछ नहीं, एक तरह की क्रिएशन है और यह हम खुद क्रिएट करते हैं। दरअसल, वे बच्चे इस तरह के हौव्वा से ज्यादा परेशान होते हैं, जो पूरे वर्ष एक स्ट्रेटेजी बनाकर पढाई नहीं करते। और जब आपके पैरेंट्स या टीचर दसवीं में आते ही सीरियस हो जाने के लिए कहते हैं, तो इन बातों से आपका और परेशान हो जाना स्वाभाविक ही होता है। दरअसल, हर कक्षा अपने आप में महत्वपूर्ण है। फर्क सिर्फ इतना है कि बोर्ड परीक्षा बडे स्तर पर होती है और इस परीक्षा के माध्यम से आप आने वाले दिनों में खुद को कहां पाते हैं, इसे भी जानने में सक्षम होते हैं।
रंग लाती है रेगुलर प्रैक्टिस
फ्रोबेल एक प्रसिद्ध शिक्षाविद् थे। उन्होंने रेगुलर अभ्यास के बारे में कुछ पते की बातें बताई हैं। उनके अनुसार, अभ्यास से हम न केवल हर रोज कुछ-न-कुछ नया सीखते रहते हैं, बल्कि इससे हमारे व्यक्तित्व का विकास भी होता है। केवल यही नहीं, नियमित अभ्यास का असर आप शुरू के दिनों में ही महसूस कर सकते हैं। यानी कुछ ही दिनों में रेगुलर पढाई के कारण आपका कमिटमेंट कितना अच्छा आउटपुट दे रहा है, इसे जानकर आपको न केवल खुशी होगी, बल्कि आपका कॉन्फिडेंस भी और बढेगा!
स्मार्ट प्लानिंग से बनेगी बात
पहले पायदान पर खुद को देखना सभी को अच्छा लगता है। पर इसके लिए जरूरत होती है एक स्मार्ट प्लानिंग की। जैसे, आप परीक्षा के दिनों में जितनी मेहनत करते हैं, वहीं आप यदि आने वाले तीन महीनों में यानी अप्रैल, मई और जून में करें, तो यही कहलाएगी आपकी स्मार्ट प्लानिंग। नहीं, नहीं हमारा मकसद आपको बोर्ड के प्रति अभी से सीरियस करना बिल्कुल नहीं है। दरअसल, हम आपको यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि स्मार्ट प्लानिंग का आपको आने वाले दिनों में कितना लाभ मिल सकता है! जैसा कि आप जानते हैं कि इन दिनों न केवल कक्षाओं में वर्क लोड कम होता है, बल्कि दो महीने की छुट्टियां भी अभी बाकी हैं। अब यदि आप इन अवधियों का पूरा सदुपयोग करेंगे, तो जरा सोचिए एग्जाम के दिनों में आपको इसका कितना फायदा मिलेगा! याद रखें, यही वे दिन हैं, जब समय आपके दरवाजे पर दस्तक देते हुए कह रहा है कि तुम अपना काम शुरू करो। मैं तुम्हारे
साथ हूं।
फिर न होगी टेंशन
बोर्ड एग्जाम से डरना एक नेचुरल फीलिंग है और इससे आप नहीं बच सकते। लेकिन यदि आप इन दिनों खुद पहल करेंगे, तो बोर्ड का डर बिल्कुल नहीं रहेगा। जैसे, नियमित रूप से असाइनमेंट बनाकर टीचर्स या पैरेंट्स से चेक कराते रहना, कैसे बढिया आंसर लिख सकते हैं, इस बारे में डिस्कस करना आदि। और हां, बोर्ड के टेंशन में बाहर घूमने-फिरने या खेलने-कूदने को कम करना भी सही नहीं है। बोर्ड एग्जाम है, इसलिए हमें कम खेलना है या कम मस्ती करनी है, यदि इस तरह की बातें सोचते रहेंगे, तो इससे आपकी परफॉर्मेस बेहतर होने की बजाय खराब भी हो सकती है!
जयंती दत्ता, वरिष्ठ मनोचिकित्सक
दस का फंडा
आगामी तीन महीनों में अपनाइए दस का फंडा, ताकि आने वाला बोर्ड एग्जाम आपके लिए
हौव्वा न बन सके ..
1. वर्ष भर के पाठ्यक्रम को तीन हिस्सों में विभाजित करें।
2. सभी हिस्सों को तीन महीने में कम से कम एक बार पढना है, यह तय कर लें।
3.एन.सी.ई.आर.टी की पुस्तकों को कम से कम एक बार गंभीरता से स्टडी जरूर करें।
4.रीडिंग के लिए आने वाले तीन महीनों का करें अधिक-से-अधिक इस्तेमाल।
5.मैथ्स के लगभग सभी मेथॅड, फार्मूले आदि सीखने का यह बिल्कुल सही समय है।
6. हिस्ट्री, पॉलिटिकल साइंस आदि विषयों की पुस्तकें बाद में नहीं डराएंगी, यदि आप इसे अभी कहानी की तरह पढ डालें।
7. सभी विषयों को पढने का टाइम तय करें और उन्हें नियमित पढने की आदत डालें।
8. रोज तीन से चार घंटे पढाई की आदत जरूर डालें। जब ऐसा होगा, तब बोर्ड का हौव्वा भी गायब हो जाएगा!
9. अभी से बोर्ड की पढाई करने से खुद पर फुल कॉन्फिडेंस आएगा। इसलिए इसमें कोताही न बरतें।
10. न केवल टीचर्स का पूरा सहयोग लें, बल्कि एक्स्ट्रा कोचिंग भी जरूर लें, ताकि बेहतर ढंग से सिलेबस कॅवर हो सके।

एक नहीं, दस कमल हासन दशावतार



एक नहीं, दस कमल हासन दशावतार

फिल्म समीक्षा";

मुख्य कलाकार : कमल हासन, मल्लिका शेरावत, असिन
निर्देशक : रवि कुमार
तकनीकी टीम :
अगर आप कमल हासन के प्रशंसक हैं तो भी इस फिल्म को देखने जाने से पहले एक बार सोच लें। कमल हासन आत्ममुग्ध अभिनेता हैं। कुछ समय पहले तक उनकी इसी आत्ममुग्धता के कारण हमने कई प्रयोगात्मक और रोचक फिल्में देखीं। लेकिन इधर उनकी और दर्शकों की टयूनिंग नहीं बन पा रही है। वह आज भी प्रयोग कर रहे हैं। ताजा उदाहरण दशावतार है। हालांकि तमिल और हिंदी में बनी फिल्म के निर्देशक रवि कुमार है, लेकिन यह फिल्म कमल हासन का क्रिएटिव विलास है।
यह अमेरिका में काम कर रहे भारतीय वैज्ञानिक गोविंद सोमाया की कहानी है। गोविंद सिंथेटिक जैविक हथियार बनाने की प्रयोगशाला में काम करता है। एक छोटी घटना में हम उस जैविक हथियार का प्रभाव एक बंदर पर देखते हैं। गोविंद उस जैविक हथियार को सुरक्षित हाथों में पहुंचाना चाहता है।
संयोग से बैक्टीरिया जिस डिब्बे में बंद हैं वह भारत चला जाता है। गोविंद उसकी खोज में भारत आता है। यहां से नायक और खलनायक की बचने-पकड़ने के रोमांचक दृश्य शुरू होते हैं। इन दृश्यों में जो दूसरे किरदार आते हैं, उनमें से नौ भूमिकाएं कमल हासन ने ही निभाई है। एक सहज जिज्ञासा होती है कि अगर इन्हें अलग-अलग कलाकारों ने निभाया होता तो क्या फिल्म प्रभावशाली नहीं हो पाती? निश्चित ही कमल हासन ने अपनी सभी भूमिकाओं को मेकअप और मैनरिज्म से अलग करने की कोशिश की है। लेकिन उनकी जबरदस्त प्रतिभा के बावजूद कहीं न कहीं एकरूपता बनी रहती है। हालांकि कुछ दृश्यों में कमल हासन का निजी मैनरिज्म दिख ही जाता है।
रंगराजा नांबी ने कहानी, दृश्य, परिवेश और प्रस्तुति में प्रभावित किया है। ऐसा लगता है जैसे पर्दे पर हम कोई एपिक देख रहे हैं। सभी तकनीशियनों का सहयोग फिल्म के इस हिस्से को गत्यात्मक और विशाल बनाता है। लेकिन फिल्म की गति बनी नहीं रह पाती। कहीं न कहीं एक ही कलाकार द्वारा निभाए जा रहे नौ किरदारों की भिन्नता दिखाने में कहानी छूट गई है।
कमल हासन टुकड़ों-टुकड़ों में अच्छे लगते हैं। उनकी प्रतिभा के बारे में दो राय नहीं, लेकिन उसका दुरुपयोग उचित नहीं कहा जा सकता। असिन और मल्लिका शेरावत अपनी भूमिकाओं को निभा ले जाती हैं। असिन और कमल हासन की जोड़ी में उम्र का अंतराल साफ नजर आता है। फिल्म के विशेष प्रभाव अच्छे हैं। खासकर सुनामी के दृश्यों में तकनीकी दक्षता झलकती है।